गर्भावस्था की पहली तिमाही कैसी होती है
गर्भावस्था के शुरू के तीन महीने पहली तिमाही कहलाती है। अगले तीन महीने दूसरी तिमाही और आखिरी तीसरी तिमाही कहते हैं। ये वो पल होता है जिसका हर पति पत्नी बेसब्री से इन्तजार करते हैं। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार पहले सप्ताह में ये बुलबुले जैसे दिखते हैं।
वैसे किसी भी महिला को पहली तिमाही में एक महीना बीत जाने पर ही गर्भ का पता चलता है। एक महीने बाद शरीर में बदलाव महसूस होते है। पहली तिमाही गर्भधारण से लेकर 12 वे सप्ताह तक की होती है। पहली तिमाही में गर्भपात का खतरा रहता है। इसलिए इस समय सबसे ज्यादा सावधानी की आवश्यकता होती है।
गर्भावस्था में होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलाव :-
1 अचानक से चक्कर आना ।
2 सुबह उठते ही जी मिचलाना या उलटी होना ।
3 सिर में दर्द महसूस होना ।
4 पेट और सीने में जलन होना ।
5 मुँह का स्वाद बदल जाना ।
6 कई गर्भवतियों को दिन में 6 से 8 बार उल्टियाँ होती है। जिससे शरीर में काफी कमजोरी महसूस होती है।
7 मानसिक रूप से थोड़ी चिड़चिड़ाहट भी हो सकती है। जब स्त्री के शरीर में इतने परिवर्तन होते है तो थोड़ी चिड़चिड़ाहट होना स्वाभाविक है।
8 पेट फूलना या गैस ज्यादा बनना।
9 पेट के नीचे वाले हिस्से में दर्द महसूस होना ।
10 पीरियड का बंद होना सबसे बड़ा संकेत है।
11 रक्त का हल्का स्त्राव होना जिसे स्पॉटिंग कहते है।
12 स्तनों में ऐंठन या हल्का हल्का दर्द महसूस होना।
13 भोजन बनाने और खाने का मन नहीं करना।
14 भोजन की गंध से उल्टी होना।
15 कई महिलाओं को इस समय कब्ज की भी शिकायत होती है।
इन सब परेशानियों से घबराएं नहीं । ये गर्भावस्था में होने वाले आम परिवर्तन है। आप उस ख़ुशी का अनुभव करें जो प्रकृति और भगवान ने आपको दी है। और उसके लिए हमेशा उनका आभार व्यक्त करें । ये पल जीवन के सबसे अलग और सुनहरे पल होते है । इसलिए इन्हें अपने पति और परिवार वालों के साथ संयम से निकालें।
गर्भावस्था के पहले तीन महीने में ध्यान रखने योग्य बातें:-
1 गर्भवती को देर रात तक नहीं जागना चाहिए ।
2 गर्भवती स्त्री को पेट के बल नहीं सोना चाहिए ।
3 पहली तिमाही में व्यायाम ना करें तो सही होगा। डॉक्टर से अवश्य परामर्श लें।
4 शिशु की बुद्धि तेज करने के लिए कोई दवा लेना चाहती है तो अपने डॉक्टर से परामर्श लेकर ही औषधि लें ।
5 उकडू होकर बैठना , ज्यादा भागादौड़ी करना शुरू के तीन महीनों में ध्यान रखें।
6 ज्यादा देर तक ना खड़ी रहें।
7 इस समय से ही माता पिता को अपने गर्भस्थ शिशु से बात करना शुरू करना चाहिए ।
8 इसी समय से शिशु में गर्भसंस्कार शुरू हो जाते हैं। अच्छी बुद्धि विद्या के लिए गणेश मन्त्र या स्तोत्र और सरस्वती माता का स्मरण करना चाहिए।
9 मधुर संगीत सुनना चाहिए ।
10 सबसे महत्वपूर्ण बात पहले तीन महीनों में यौन सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए । इस समय पति पत्नी एक दूसरे को पूरा सहयोग दें। कई महिलाओं को असहज महसूस होता है । ये समय गर्भवती और शिशु के लिए सबसे अहम समय होता है।
गर्भावस्था की पहली तिमाही या पहले तीन महीने में भ्रूण विकास :-
गर्भावस्था के पहले महीने की शुरुआत में शिशु एक बुलबुले जैसा होता है। इस समय शिशु को आकार लेने में समय लगता है। इस समय शिशु चावल या संतरे के बीज जितना होता है।
दूसरे महीने में शिशु के हाथ ,पैर और शरीर बनना शुरू हो जाते है। ह्रदय का निर्माण भी इसी समय होता है। एक शोध
(रिसर्च ) के अनुसार दो माह के गर्भस्थ शिशु की सुनने की शक्ति आ जाती है। तो इस समय से ही अच्छी बातें सुनना और देखना चाहिए । शिशु का लिंग भी बनने लग जाता है।
दूसरे महीने के अंत में शिशु लगभग एक इंच लम्बा हो जाता है। दूसरे महीने में गर्भस्थ शिशु का गर्भनाल भी दिखाई देने लगता है।
तीसरे महीने में शरीर के सभी हिस्से साफ़ नजर आते है। मस्तिष्क भी बढ़ने लगता है। इस समय शिशु की नसें और मांसपेशियाँ बनने लगती है । तीसरे महीने में शिशु का लिंग पूरी तरह बन चुका होता है।
इसी समय से गर्भस्थ शिशु महसूस करने लगता है। रोना , हंसना , अच्छी बुरी भावनायें बनने लगती है। तीसरे महीने में स्वाद को भी समझने लगता है। हल्की हल्की हलचल भी महसूस होती है। तीसरे महीने में सामन्यतः शिशु 3 इंच तक बढ़ जाता है।
इस समय माँ जो पढ़ती , देखती और सुनती हैं उन सबका प्रभाव शिशु पर भी पड़ता है। इसलिए माँ जितना खुश और शांत रहेगी उतना ही उसके शिशु के लिए अच्छा होगा । ये तीन महीने अधिकतर महिला के लिए थोड़े कठिन जरूर होते हैं। पर साथ ही वो आने वाले सुनहरे पल भी हमें याद रखने चाहिए । जो एक महिला को सम्पूर्ण करते है।
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