गर्भवती महिला की कितने जाँचें होनी चाहिए
जब महिला पहली बार गर्भवती होती है, तो मन में कई सवाल चलते हैं। डर भी होता है। कब डॉक्टर के पास जाना हैं ? क्या क्या
जाँचें होती हैं ? कितने समय में जाँचें करानी चाहिए ? क्या इन सभी की जरुरत है भी या नहीं ? कई बार डर भी लगता है। आज
हम गर्भावस्था में होने वाली जाँचों के बारे में जानेंगे।
गर्भवती महिला की जॉंच की आवश्यकता क्यों है
डिलीवरी या प्रसव से पहले जॉंच गर्भवती और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए उचित है। कई बार गर्भवती को शारीरिक समस्या
भी हो सकती है । जॉंच के माध्यम से शिशु और माँ का समय पर बचाव किया जा सकता है। इसलिए अपने डॉक्टर के परामर्शानुसार चलें।
गर्भवती महिला की जाँचें
गर्भवती महिला को पहली तिमाही के दौरान कई जाँचें करानी होती है। इनमें निम्न शामिल हैं :-
* ब्लड ग्रुप :-
ब्लड ग्रुप की जानकारी किसी भी गर्भवती के लिए सबसे अहम होती है। किसी भी आपातकालीन स्थिति में इस जॉंच में सहायता
मिलती है।
* हीमोग्लोबिन :-
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण जाँचों में से एक है। यदि गर्भावस्था के पहले हीमोग्लोबिन 12 ग्राम हैं, तो गर्भावस्था के दौरान इसमें
कामी आती है। और ये गिरकर 10 या 11 ग्राम हो सकता है। गर्भवती स्त्री का हीमोग्लोबिन 12 ग्राम प्रतिशत से लेकर 16 ग्राम
प्रतिशत तक होना चाहिए । 12 या उससे काम आयरन की कमी बताता है और डिलीवरी के समय बड़ी परेशानी खड़ी कर
सकता है।
* रक्त शर्करा जॉंच ( ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन ) :-
गर्भावस्था में कई बार महिला का शुगर ( मधुमेह ) लेवल घट बढ़ सकता है। जो कि माँ और शिशु दोनों के लिए सुरक्षित नहीं है।
यह सभी जाँचों का एक हिस्सा है। ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन से पिछले कुछ हफ्तों के शर्करा स्तर को बताता है। यदि
शर्करा स्तर निर्धारित सीमा से अधिक होता है तो महिला कि जॉंच आगे भी चलती है।
* HBsAG :-
यह जाँच हेपेटाइटिस बी का पता लगाने के लिए कि जाती है। ये लिवर से जुड़ा संक्रमण होता है। अगर गर्भवती इससे पीड़ित है
तो बच्चे में भी संक्रमण हो सकता है।
* T.S.H या थाइराइड :-
यह जॉंच बहुत महत्वपूर्ण होती है। ये मेटाबोलिक रेट के लिए आवश्यक है। शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए थाइराइड
हार्मोन जरुरी है। जो भी महिला थाइराइड से पीड़ित होती है उसके गर्भवती होने में भी समस्याएं आती है। कई बार गर्भपात भी
हो सकता है। इसलिए गर्भधारण से पहले ही इसका इलाज करना उचित है।
* यूरिन टेस्ट ( मूत्र जॉंच ) :-
इससे मूत्र मार्ग में संक्रमण का पता चलता है। जिसे समय पर औषधियों द्वारा ठीक किया जाता है। सामान्य जॉंच से प्रोटीन्यूरिया
या मूत्र में प्रोटीन कितना है बताता है।
* अल्ट्रासाउंड :-
इसका उपयोग गर्भस्थ शिशु के विकास का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह एक सामान्यतः तीन बार कि जाती है ।
प्रथम तिमाही में
दूसरी तिमाही में
तीसरी तिमाही में
ज्याद अल्ट्रासाउंड कराना शिशु के लिए ठीक नहीं है। बिना डॉक्टर कि सलाह के ना करायें। आजकल ये 3D या 7D में भी होने
लगी है।
* E.C.G :-
जिन महिलाओं को पहले से ही ह्रदय या सीने में दर्द रहता है। या रक्तचाप कि समस्या रहती है तो डॉक्टर ये जॉंच भी कराते हैं।
* H.I.V :-
इससे एड्स भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति कि रोग प्रतिरोधक क्षमता काम होती जाती है। इसका अंतिम चरण जानलेवा हो
सकता है। शिशु और माँ की सुरक्षा की दृष्टि से यह जॉंच कराइ जाती है।
* V.D.R.L. :-
यह एक यौन संक्रामक रोग है। जिसमे सिफलिस संक्रमण पाया जाता है। यदि महिला इससे संक्रमित होती हैं तो ह्रदय रोग,
मस्तिषक रोग, अंधापन , रीढ़ की हड्डी कि समस्या और कई बार जीवन के लिए भी खतरा हो सकता है। इसलिए ये जाँच
गर्भवती के लिए महत्वपूर्ण होती है।
ये सभी जाँचें आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं । इन जांचों से घबरायें नहीं। ये शिशु और माता दोनों के लिए ही उचित है। हमारे तो बस यही उद्देश्य हैं कि गर्भवती और शिशु दोनों स्वस्थ , सुरक्षित और खुशहाल जीवन का आंनद लें।
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